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महाशिवरात्रि 2023: क्यों मनाई जाती है – महा शिवरात्रि कथा और पूजाविधि

महाशिवरात्रि 2023: क्यों मनाई जाती है – महा शिवरात्रि कथा और पूजाविधि

हिंदू पंचांग के अनुसार साल 2023 में महाशिवरात्रि तिथि 18 फरवरी शनिवार को रात 8 बजकर 2 मिनट से शुरू होगी और चतुर्दशी तिथि का समापन 19 तारीख रविवार को शाम 4 बजकर 18 मिनट पर होगा।

महाशिवरात्रि एक हिंदू त्योहार है जो भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। शिवरात्रि का अर्थ ‘शिव की रात’ भी है। शिवरात्रि को लेकर देशभर में तरह-तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है और देश भर में कई जागरण आयोजित किए जाते हैं। भगवान शिव के मंदिरों में महाशिवरात्रि के दिन काफी सारे भक्त आते हैं और कुछ मंदिरों में इस दिन भक्तों की संख्या हजारों लाखों में होती है।

महाशिवरात्रि के बारे में कौन नहीं जानता। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो शिवरात्रि का व्रत रखते हैं लेकिन उन्हें नहीं पता कि महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है? भारत का नाम अपनी धार्मिक सभ्यताओं के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भारत में धर्म से जुड़े कई त्योहार मनाए जाते हैं। भारत में कई ऐसे त्यौहार हैं जो केवल कुछ धर्मों द्वारा ही मनाए जाते हैं, जबकि कई ऐसे त्यौहार हैं जो पूरे देश में मनाए जाते हैं। ऐसा ही एक पर्व है महाशिवरात्रि।

हिंदू धर्म में भगवान भोलेनाथ की पूजा का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव बहुत ही दयालु और दयालु भगवान हैं। वे एक गिलास पानी से भी खुश हो जाते हैं। हर महीने आने वाली मासिक शिवरात्रि के साथ ही साल में आने वाली महा शिवरात्रि का भी विशेष महत्व है। देशभर में महाशिवरात्रि का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं ‘महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?’ अगर नहीं तो आज की पोस्ट आपके बहुत काम आने वाली है. आज हम महाशिवरात्रि की शुरुआत से लेकर महाशिवरात्रि के अनुष्ठानों की सभी जानकारी प्राप्त करेंगे।

महाशिवरात्रि क्यों मनाया जाता है

अलग-अलग ग्रंथों में महाशिवरात्रि की अलग-अलग मान्यता मानी गई है। कहा जाता है कि शुरुआत में भगवान शिव का केवल निराकार रूप था। भारतीय ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर आधी रात को भगवान शिव निराकार से साकार रूप में आए थे।

हर भारतीय त्योहार की तरह महाशिवरात्रि को लेकर भी काफी सारी मान्यताएं प्रचलित है। प्राचीन ग्रंथों के कई कथाएं महाशिवरात्रि से जुड़ी हुई है। महाशिवरात्रि को लेकर सबसे प्रचलित कथा शिव के जन्म की मानी जाती है। कई ग्रंथों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव पहली बार प्रकट हुए थे। इस दिन वह अपने सर्वश्रेष्ठ स्वरूप अग्निलिंग के रूप में सामने आये थे जिसका न तो कोई आदि था और न ही कोई अंत।

एक कथा यह भी कहती हैं की फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को एक साथ 64 जगहों पर शिवलिंग प्रकट हुए थे। अभी तक हमे इनमे से 12 के बारे में ही ज्ञान हैं जिन्हें हम सभी ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।  महाशिवरात्रि को शिव की शादी के रूप में भी मनाया जाता हैं. कहा जाता हैं की इस दिन ही शिव ने अपना वैराग्य छोड़कर शक्ति से शादी की थी और अपना सांसारिक जीवन शुरू किया था.

भारतीय मान्यता के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सूर्य और चंद्र अधिक नजदीक रहते हैं। इस दिन को शीतल चन्द्रमा और रौद्र शिवरूपी सूर्य का मिलन माना जाता हैं। इसलिए इस चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता हैं।

कहा जाता हैं की इस दिन भगवान शिव प्रदोष के समय दुनिया को अपने रूद्र अवतार में आकर तांडव करते हुए अपनी तीसरी आंख से भस्म कर देते हैं. फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही पार्वती और शिव की शादी का दिन माना जाता हैं।

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया

वहीं एक अन्य कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का मिलन हुआ था। फाल्गुन चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव ने अपना वैराग्य त्याग कर देवी पार्वती से विवाह किया और गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया। इसी वजह से हर साल फाल्गुन चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की खुशी में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि पर आधारित कथा

शिव पुराण के अनुसार, एक समय में चित्रभानु नामक शिकारी शिकार करके अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। उस पर साहूकार का कर्ज था, समय से कर्ज चुकता न करने के कारण साहुकार ने उसे बंदी बना लिया। उस दिन शिवरात्रि थी। दिनभर वह भूखे प्यासे रहते हुए भगवान शिव का स्मरण किया और दिन गुजर गया। शाम को साहूकार ने उसे कर्ज चुकाने के लिए अलगे ​एक दिन का समय दिया और चित्रभानु को छोड़ दिया।

तब चित्रभानु भूख-प्यास से व्याकुल होकर जंगल में शिकार खोजने लगा। देखते-देखते शाम और फिर रात हो गई। तब वब एक तालाब के पास बेल के पेड़ चढ़ गया और रात बीतने की प्रतीक्षा करने लगा। उस बेल के पेड़ के नीचे शिवलिंग था। चित्रभानु अनजाने में बेलपत्र तोड़कर नीचे गिरा रहा था, जो शिवलिंग पर गिर रहे थे। इस प्रकार संयोगवश वह दिनभर भूखा प्यासा रहा, जिससे उसका व्रत हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र गिरने से उसकी शिव आराधना भी हो गई।

रात बीतने पर एक एक गर्भिणी हिरणी तालाब किनारे पानी पीने आई। तब वह धनुष-बाण से उसका शिकार करने के लिए तैयार हो गया। उस हिरणी ने चित्रभानु देख लिया, उसने शिकारी से कहा कि वह गर्भवती है, जल्द ही प्रसव करेगी। उसने शिकारी से कहा कि तुम एक साथ दो जीव हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। हिरणी ने शिकारी को वचन दिया कि वह बच्चे को जन्म देकर आएगी, तब शिकार कर लेना। इस पर शिकारी ने उसे जाने दिया। इस दौरान प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करते समय कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिरे। इससे प्रथम प्रहर की शिव पूजा हो गई।

कुछ समय बाद एक और हिरणी वहां से जा रहा थी, तब शिकारी खुश होकर उसके शिकार के लिए तैयार हो गया। तब हिरणी ने उससे निवेदन किया कि ‘हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’ तब शिकारी ने उसे जाने दिया। चित्रभानु शिकार न कर पाने से चिंतित था। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था, इस बार भी कुछ बेलपत्र टूटकर शिवलिंग पर गिरे, जिससे दूसरे प्रहर की भी पूजा हो गई।

तभी एक दूसरी हिरणी बच्चों के साथ वहां से जा रही थी। तब चित्रभानु ने उसका शिकार करने का​ निर्णय कर लिया। तब हिरणी ने उससे कहा, ‘हे शिकारी!’ मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।’ इस पर शिकारी ने कहा कि वह मूर्ख नहीं है, इससे पहले अपने दो शिकार छोड़ चुका है। उसका परिवार भूख प्यास से तड़प रहा होगा। तब हिरणी ने कहा, ‘मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ। ऐसे करते हुए सुबह हो गई और अनजाने में ही शिकारी की शिवरात्रि की पूजा हो गई। उपवास और रात्रि-जागरण भी हो गया। इसी बीच एक हिरण वहां से जा रहा था, तब शिकारी ने इसका शिकार करने का निश्चय कर लिया।

चित्रभानु को प्रत्यंचा चढ़ाए देखकर उस हिरण ने निवदेन किया कि यदि तुमने मेरे से पहले तीन हिरणी और उनके बच्चों का शिकार कर लिया हो, तो उसे भी मार दो। ताकि उनके वियोग में दुखी न होना पड़े। अगर उनको जीवनदान दिया है तो कुछ समय के लिए उसे भी जीवनदान दे दो। उनसे मिलकर वह दोबारा यहां आ जाएगा।

हिरण की बातें सुनकर शिकारी के मन में रात का पूरा घटनाक्रम सामने आ गया। उसने सारा घटनाक्रम हिरण को बताया। तब हिरण ने कहा कि वे तीनों हिरणी उसकी पत्नियां हैं, जिस प्रकार वे तीनों प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, उसकी मृत्यु से वे अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। जिस प्रकार तुमने उन पर विश्वास करके उन्हें जाने दिया, वैसे ही उसे भी जाने दो। वह अपने परिवार के साथ जल्द ही यहां उपस्थित हो जाएगा।

चित्रभानु ने उसे भी जाने दिया। शिवरात्रि व्रत और पूजा होने से उसका मन निर्मल हो गया। उसके अंदर भक्ति की भावना जागृत हो गई। कुछ समय बाद वह हिरण अपने दिए वचन के कारण अपने परिवार के साथ शिकारी के सामने उपस्थित हो गया। उन जीवों की सत्यता, सात्विकता एवं प्रेम भावना को देखकर चित्रभानु को आत्मग्लानि हुई। उसने हिरण परिवार को जीवनदान दे दिया। अनजाने में ही सही, शिवरात्रि का व्रत करने से ​चित्रभानु को मोक्ष मिला। मृत्य के बाद शिवगण उस शिकारी को शिवलोक ले गए।

महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व

भगवान शिव को जितना अधिक सांसारिक लोग मानते हैं उससे कहीं ज्यादा अधिक आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले लोग भी मानते हैं। भगवान शिव को एक संहारक से कही पहले एक ज्ञानी माना जाता हैं। योगिक परंपरा के अनुसार शिव कोई देगा नहीं बल्कि आदि गुरु है जिन्होंने सबसे पहले ज्ञान प्राप्त किया और उस ज्ञान का प्रसारण किया।

जिस दिन उन्होंने ज्ञान की चरम सीमा को छुआ और वह स्थिर हुए और उस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता हैं।

इसके अलावा वैरागी लोग भी भगवान शिव को एक वैरागी ही मानते हैं जो सांसारिक जीवन से दूर है. कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार भगवान शिव एक सत्य रूप है और यह पूरा संसार केवल मोहमाया है। विशेष आराधना के माध्यम से हम सभी लोग इस मोह माया से दूर होकर सत्य रूप को प्राप्त कर सकते हैं और शिव में मिल सकते हैं।

यौगिक परम्परा में भगवान शिव को एक ज्ञानी और वैरागी माना गया हैं। यह परम्परा शांति में विश्वास रखती हैं। इस वजह से महाशिवरात्रि आध्यात्मिक रूप से भी काफी खास हैं।

भारत में महादेव के करोड़ों भक्त है। यह बात काफी रोचक है कि आजकल की यूथ भी महादेव को सबसे अधिक मानती है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि को भगवान शिव अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं। भगवान शिव को विभिन्न संप्रदायों के लोग विभिन्न दृष्टियो से देखते हैं। संसार में मग्न लोग भगवान शिव को शत्रुओं का संहार करने वाले मानते हैं और उनके अनुसार इस दिन भगवान शिव अपने शत्रुओ पर विजय प्राप्त करते हैं।

महाशिवरात्रि के दिन को भगवान शिव के भक्त काफी हर्षोल्लास से सेलिब्रेट करते हैं। कुछ लोग इस दिन जागरण करवाते हैं तो कुछ लोग भगवान शिव की पूजा करवाते हैं। वहीं दूसरी तरफ इस दिन कुछ संप्रदाय के लोग नशीले पदार्थों जैसे कि हुक्का व शराब आदि का सेवन भी करते हैं। महाशिवरात्रि को महीने का सबसे अंधेरे का दिन माना जाता हैं। कहा जाता हैं की इस दिन भगवान शिव बुरी शक्तियों का संहार करते हैं और उनके साम्रज्य का विनाश करते हैं।

महाशिवरात्रि कब मनाई जाती हैं?

महाशिवरात्रि अधिकतर भारतीय त्योहारों की तरह भारतीय महीनों के अनुसार ही मनाई जाती है। वैसे तो हर भारतीय महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि माना जाता है लेकिन फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि की दिनांक अंग्रेजी महीनों के हिसाब से हर साल बदलती रहती हैं। साल 2023 में महाशिवरात्रि का त्यौहार 21 फरवरी को मनाया जाएगा.

महाशिवरात्रि पूजाविधि

विभिन्न स्थानों पर महाशिवरात्रि को लेकर विभिन्न मान्यताएं प्रचलित है और इस वजह से महाशिवरात्रि को कई तरह से मनाया जाता हैं। शिवभक्त इस दिन पवित्र नदियो जैसे की गंगा व यमुना में सूर्योदय के समय स्नान करते हैं। स्नान के बाद साफ व पवित्र वस्त्र पहने जाते हैं। इसके बाद घरों व मंदिरों में विभिन्न मंत्र व जापों के द्वारा भगवान शिव की पूजा की जाती है। शिवलिंग को दूध व जल से स्नान कराया जाता हैं।

हर शिवरात्रि की सम्पूर्ण पूजाविधि की बात करे तो सबसे पहले शिवलिंग को पवित्र जल या दूध से स्नान कराया जाता हैं। स्नान के बाद शिवलिंग पर सिंदूर लगाया जाता हैं। इसके बाद शिवलिंग पर फ़ल चढ़ाए जाते हैं. इसके बाद अन्न व धूप को अर्पित लगाया जाता हैं। कुछ लोग शिवलिंग पर धन भी चढाते हैं। इसके बाद आध्यात्मिक दृष्टि से शिवलिंग के आगे ज्ञान के प्रतीक के रूप में एक दीपक जलाया जाता हैं। इसके बाद पान शिवलिंग पर पान के पत्ते भेंट लिए जाते हैं जिनके बारे में कई विशेष मान्यताये हैं।

महाशिवरात्रि को जाग्रति की रात माना जाता हैं। महाशिवरात्रि को रात में शिव की महान पूजा व आरती की जाती हैं। इस दिन रात को शिव व पार्वती की काल्पनिक रूप से शादी की जाती हैं और बारात निकली जाती हैं। कुछ सम्प्रदायों में इस रात नाचने, गाने व खुशिया मनाने की मान्यता है अतः वह मेलो व जागरण का आयोजन करते हैं।

शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में क्या अंतर है?

शिवरात्रि हर मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है लेकिन महाशिवरात्रि फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है।

शिवरात्रि पर क्या हुआ था?

महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का महापर्व है. फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है।

आचार्य मुरारी पांडेय जी

।।। जय सियाराम।।।

 

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