Navami 2023: माता सीता के जन्मोत्सव को सीता नवमी या जानकी जयंती के नाम से जाना जाता है। सीता नवमी का राम नवमी जितना ही महत्व है। मान्यता है कि भगवान श्री राम स्वयं विष्णु और माता सीता साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप हैं।
Sita Navami 2023: 29 अप्रैल 2023 दिन शनिवार को सीता नवमी है। मान्यता है कि इसी दिन माता सीता का जन्म हुआ था। माता सीता के जन्मोत्सव को सीता नवमी या जानकी जयंती के नाम से जाना जाता है। सीता नवमी का राम नवमी जितना ही महत्व है। मान्यता है कि भगवान श्री राम स्वयं विष्णु और माता सीता साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप हैं। सीता नवमी के दिन माता लक्ष्मी धरा पर अवतरित हुई थीं। इस कारण इस सौभाग्यशाली दिन जो भी जातक माता सीता और भगवान राम की पूजा अर्चना करता है, उसपर भगवान श्री हरि विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इसके अलावा सीता नवमी के दिन जनक दुलारी की चालीसा पढ़ने का भी बहुत महत्व है।
सीता नवमी का महत्व
आमतौर पर सीता नवमी वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है, लेकिन भारत के कुछ हिस्सों में इसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भी मनाते हैं। हालांकि रामायण में सीता जी के अवतरण से जुड़ी यह दोनों तिथियां सही मानी गई हैं। भगवान श्री राम को विष्णु का तथा सीता जी को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है, इसलिए सीता नवमी को एकदम राम नवमी की तरह बड़े ही विधिवत तरीके से मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन जो व्यक्ति सीता जी और भगवान श्री राम की पूजा-अर्चना करता है, उस पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है।
माता सीता के अवतरण का ज़िक्र हमें रामायण में मिलता है। एक कथा के अनुसार, मिथिला राज्य में बहुत लंबे समय तक वर्षा नहीं हुई, जिसके कारण वहां की प्रजा तथा वहां के राजा जनक बहुत चिंतित थे। तब राजा जनक ने ऋषियों से इस समस्या का समाधान पूछा तो उन्होंने राजा जनक को बताया कि यदि वे स्वयं हल चलाएं तो इंद्रा देवता बहुत प्रसन्न होंगे और राज्य में वर्षा होने लगेगी। ऋषियों के सुझाव के मुताबिक राजा ने स्वयं हल चलाना शुरू किया। हल चलाने के दौरान उनका हल एक कलश से टकराया, जिसमें एक बहुत सुंदर बच्ची थी। राजा जनक निःसंतान थे, इसलिए उस बच्ची को देखकर वे बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने उस बच्ची को अपना लिया और अपने घर ले आए। राजा ने उस बच्ची का नाम रखा सीता। जिस दिन राजा जनक को वह प्यारी सी बच्ची सीता मिली थी, वह वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी। तभी से इस दिन को सीता नवमी या जानकी नवमी के नाम से मनाया जाने लगा।
सीता नवमी के दिन माता सीता और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पूजा करने के साथ-साथ कुछ लोग व्रत भी करते हैं। जिसकी तैयारियां अष्टमी तिथि से ही शुरू कर दी जाती हैं।
मेष: मेष राशि के जातक सीता नवमी के दिन माता सीता को सिंदूर अर्पित करें। इससे उनके भाग्य में वृद्धि होगी।
वृषभ: वृषभ राशि के जातक सीता नवमी के दिन सुंदरकांड का पाठ करें। इससे उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।
मिथुन: मिथुन राशि के जातक नवमी के दिन सीता माता को श्रृंगार सामग्री अर्पित करें। इससे उन्हें माता जानकी का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
कर्क: कर्क राशि के जातक सीता नवमी के दिन माता जानकी को खीर का भोग लगाएं। इससे उनके जीवन में मिठास बढ़ेगी।
सिंह: सिंह राशि के जातक सीता नवमी के दिन भगवान श्री राम और माता जानकी का विवाह प्रसंग पढ़ें या सुनें। इससे उनके संबंधों में मधुरता आएगी।
कन्या: कन्या राशि के जातक सीता नवमी के दिन भगवान श्री राम और माता जानकी को लाल रंग के फूल अर्पित करें। इससे उनके प्रेम जीवन में स्थिरता आएगी।
तुला: तुला राशि के जातक सीता नवमी के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करें। इससे उन पर भगवान श्री राम और माता जानकी की कृपा बनी रहेगी।
वृश्चिक: वृश्चिक राशि के जातक सीता नवमी के दिन अन्न दान करें। इससे उनके जीवन में समस्याएं कम होंगी।
धनु: धनु राशि के जातक सीता नवमी के दिन वृद्धजनों को ज़रूरत की चीज़ें भेंट करें। इससे उनके करियर में आ रही बाधाएं दूर होंगी।
मकर: मकर राशि के जातक सीता नवमी के दिन भगवान श्री राम और माता सीता को मिश्री युक्त दूध का भोग लगाएं। इससे उनके पारिवारिक संबंधों में सुधार आएगा।
कुंभ: कुंभ राशि के जातक सीता नवमी के दिन सुंदरकांड की किताबें भेंट करें। इससे उन्हें माता जानकी का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
मीन: मीन राशि के जातक सीता नवमी के दिन भगवान श्री राम और माता जानकी के नाम का उच्चारण करें। इससे वे अपने मन पर नियंत्रण रखने में कामयाब होंगे।
सीता चालीसा पढ़ने से हर तरह के संकटों से बचाव होता है। संपूर्ण श्री सीता चालीसा इस प्रकार है-
श्री सीता चालीसा
॥ दोहा ॥
बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम, राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥
कीरति गाथा जो पढ़ें सुधरैं सगरे काम, मन मन्दिर बासा करें दुःख भंजन सिया राम ॥
॥ चौपाई ॥
राम प्रिया रघुपति रघुराई बैदेही की कीरत गाई ॥
चरण कमल बन्दों सिर नाई, सिय सुरसरि सब पाप नसाई ॥
जनक दुलारी राघव प्यारी, भरत लखन शत्रुहन वारी ॥
दिव्या धरा सों उपजी सीता, मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता ॥
सिया रूप भायो मनवा अति, रच्यो स्वयंवर जनक महीपति ॥
भारी शिव धनु खींचै जोई, सिय जयमाल साजिहैं सोई ॥
भूपति नरपति रावण संगा, नाहिं करि सके शिव धनु भंगा ॥
जनक निराश भए लखि कारन , जनम्यो नाहिं अवनिमोहि तारन ॥
यह सुन विश्वामित्र मुस्काए, राम लखन मुनि सीस नवाए ॥
आज्ञा पाई उठे रघुराई, इष्ट देव गुरु हियहिं मनाई ॥
जनक सुता गौरी सिर नावा, राम रूप उनके हिय भावा ॥
मारत पलक राम कर धनु लै, खंड खंड करि पटकिन भू पै ॥
जय जयकार हुई अति भारी, आनन्दित भए सबैं नर नारी ॥
सिय चली जयमाल सम्हाले, मुदित होय ग्रीवा में डाले ॥
मंगल बाज बजे चहुँ ओरा, परे राम संग सिया के फेरा ॥
लौटी बारात अवधपुर आई, तीनों मातु करैं नोराई ॥
कैकेई कनक भवन सिय दीन्हा, मातु सुमित्रा गोदहि लीन्हा ॥
कौशल्या सूत भेंट दियो सिय, हरख अपार हुए सीता हिय ॥
सब विधि बांटी बधाई, राजतिलक कई युक्ति सुनाई ॥
मंद मती मंथरा अडाइन, राम न भरत राजपद पाइन ॥
कैकेई कोप भवन मा गइली, वचन पति सों अपनेई गहिली ॥
चौदह बरस कोप बनवासा, भरत राजपद देहि दिलासा ॥
आज्ञा मानि चले रघुराई, संग जानकी लक्षमन भाई ॥
सिय श्री राम पथ पथ भटकैं , मृग मारीचि देखि मन अटकै ॥
राम गए माया मृग मारन, रावण साधु बन्यो सिय कारन ॥
भिक्षा कै मिस लै सिय भाग्यो, लंका जाई डरावन लाग्यो ॥
राम वियोग सों सिय अकुलानी, रावण सों कही कर्कश बानी ॥
हनुमान प्रभु लाए अंगूठी, सिय चूड़ामणि दिहिन अनूठी ॥
अष्ठसिद्धि नवनिधि वर पावा, महावीर सिय शीश नवावा ॥
सेतु बाँधी प्रभु लंका जीती, भक्त विभीषण सों करि प्रीती ॥
चढ़ि विमान सिय रघुपति आए, भरत भ्रात प्रभु चरण सुहाए ॥
अवध नरेश पाई राघव से, सिय महारानी देखि हिय हुलसे ॥
रजक बोल सुनी सिय बन भेजी, लखनलाल प्रभु बात सहेजी ॥
बाल्मीक मुनि आश्रय दीन्यो, लवकुश जन्म वहाँ पै लीन्हो ॥
विविध भाँती गुण शिक्षा दीन्हीं, दोनुह रामचरित रट लीन्ही ॥
लरिकल कै सुनि सुमधुर बानी,रामसिया सुत दुई पहिचानी ॥
भूलमानि सिय वापस लाए, राम जानकी सबहि सुहाए ॥
सती प्रमाणिकता केहि कारन, बसुंधरा सिय के हिय धारन ॥
अवनि सुता अवनी मां सोई, राम जानकी यही विधि खोई ॥
पतिव्रता मर्यादित माता, सीता सती नवावों माथा ॥
॥ दोहा ॥
जनकसुत अवनिधिया राम प्रिया लवमात,
चरणकमल जेहि उन बसै सीता सुमिरै प्रात ॥
आचार्य मुरारी पांडेय जी
।।। जय सियाराम।।।
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