हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने से व्यक्ति को हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस वर्ष पापमोचनी एकादशी 18 मार्च (शनिवार) को मनाई जाएगी। पापमोचनी एकदशी का अर्थ इसके नाम से ही ज्ञात होता है। यह दो शब्दों से मिलकर बनी है। ‘पाप’ यानी की दुष्ट कर्म, गलती और ‘मोचनी’ यानी मुक्ति, छुड़ाने वाली। अर्थात पापमोचनी एकादशी का मूल अर्थ हुआ हर तरह के पाप से मुक्ति दिलाने वाली। इस दिन व्रत करने से सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से बड़े से बड़ा पाप, कष्ट, विपदा नष्ट हो जाती है। इस व्रत में भी भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।जानिए पापमोचनी एकादशी की तिथि,शुभ मुहूर्त और महत्व।
पापमोचनी एकादशी तिथि- शनिवार, 18 मार्च 2023
एकादशी तिथि प्रारंभ: 17 मार्च 2023 दोपहर को 02 बजकर 06 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि समाप्त: 18 मार्च 2023 को सुबह 11 बजकर 13 मिनट तक
व्रत पारण का समय: 19 मार्च सुबह 06 बजकर 25 मिनट से 08 बजकर 07 मिनट तक
पापमोचनी एकादशी के व्रत के पीछे एक कहानी छिपी हुई है। जिसे सुनने और पढ़ने से ही मुक्ति मिलती है। यह कहानी भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में चैत्रथ नाम का एक वन था। इस वन में इंद्र देव, अप्सरा और गंधर्व कन्याओं के साथ भ्रमण करते थे। और यही वह वन था जहाँ ऋषि च्यवन के पुत्र मेधावी तपस्या किया करते थे। अप्सराएं कामदेव की अनुचर थीं। और कामदेव शिव के विद्रोही थे क्योंकि शिव ने कामदेव को उनकी तपस्या भंग करने के आरोप में भस्म कर दिया था। उधर, ऋषि को तपस्या करते देख इंद्र भी डर गया था कि कहीं यह देवता आदि देव से मेरा सिंहासन न मांग ले। इस वजह से कामदेव ने बदला लेने के लिए एक अप्सरा से अपना ध्यान बंटाने के लिए कहा। इस काम को करने के लिए कामदेव ने मंजूघोषा नाम की एक अप्सरा से कहा। मंजूघोषा ने इसे अपना काम समझकर ऋषि को अपने नृत्य और हाव-भाव से विचलित कर दिया। और ऋषि मंजुघोषा से प्यार हो गया। मेधावी संत अब मंजू घोषा के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करने लगे। उसके प्रेम में पागल होकर वह दिन-रात ऐश्वर्य में रहने लगा। उसे दिन-रात याद भी नहीं रहता था। इसी तरह जीते-जी लगभग 57 साल बीत गए और माजुनघोषा को अब लगा कि मेरा काम हो गया, अब मुझे स्वर्ग लौट जाना चाहिए। जिसके बाद एक दिन मंजूघोषा ने मेधावी ऋषि को स्वर्ग जाने की अनुमति दी तो मेधावी ऋषि ने कहा कि प्रिये, तुम कल ही आए हो, अब जाने लगे हो। तब मंजूघोषा ने कहा कि तुम्हें समय का पता नहीं, हमने साथ रहकर बहुत समय बिताया है। उसी समय ऋषि को आभास हुआ कि वे रसातल में चले गए हैं। उनकी तपस्या भंग हो गई है। और इन सबका कारण वह मंजू घोषा को मानते थे। जिसके बाद मेधावी ऋषि ने माजुनघोषा से कहा कि तुमने मेरा यह भला नहीं किया। तुमने मेरा कीमती समय बर्बाद किया है, मैं तुम्हें शाप देता हूं कि तुम पिशाच बनोगे। मंजूघोषा को पिशाच कहकर श्राप देने के बाद मंजूघोषा ने ऋषि से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी तो ऋषि ने उन्हें पापमोचनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी और कहा कि इससे ही तुम्हारे पाप समाप्त होंगे। जिसके बाद जब मेधावी ऋषि आश्रम लौटे तो उन्होंने पूरी बात अपने पिता को बताई। च्यवन ऋषि ने कहा कि मंजूघोषा को श्राप देकर तुमने अपने को पाप का भागी बनाया है और यदि तुम अपने पापों का अंत करना चाहते हो तो तुम्हें भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करना होगा। जिसके बाद मंजूघोषा और मेधावी ऋषि ने पूरे विधि-विधान से पापमोचनी एकादशी का व्रत किया. जिससे उसके सारे पाप नष्ट हो गए। मेधावी ऋषि फिर से तपस्या करने लगे और मंजुघोषा को राक्षसी स्त्री से मुक्ति मिल गई। यह कथा इस बात का प्रमाण है कि इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
एकादशी से एक दिन पहले सूर्यास्त से पहले ही भोजन कर लें। इस दिन सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ और सात्विक रंगों के वस्त्र धारण करें और फिर मन में व्रत का संकल्प लें। संकल्प के उपरांत षोडषोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु के सामने धूप-दीप जलाएं,आरती करें और व्रत की कथा पढ़ें। सात्विक रहते हुए जितना संभव हो ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करें। इस दिन घर में विष्णुसहत्रनाम का पाठ करना भी कई गुणा फल देता है। पापमोचनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। यह व्रत कठिन व्रत होता है। क्योंकि यह दो दिन किया जाता है। इस व्रत को करते समय भोग विलास के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भग्वद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है। अत: रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें फिर ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा सहित विदा करें। इसके पश्चात स्वयं भोजन ग्रहण करना करें। इसके बाद व्रत पूर्ण होता है।
पदमपुराण में एकादशी तिथि को भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना गया है। मान्यता है कि एकादशी का व्रत करने वाले भक्त को और कोई पूजा करने की आवश्यकता नहीं रह जाती है। इस व्रत को करने वाला प्राणी सभी सांसारिक सुखों को भोगता हुआ अंत में श्रीमन नारायण के धाम वैकुण्ठ को जाता है। पापमोचिनी एकादशी तो मनुष्य के सभी पापों को जलाकर भस्म कर देती है। इस व्रत को करने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। ब्रह्म ह्त्या,सुवर्ण चोरी,सुरापान और गुरुपत्नी गमन जैसे महापाप भी इस व्रत को करने से दूर हो जाते हैं,अर्थात यह व्रत बहुत ही पुण्य प्रदान करने वाला है। यदि भक्तिपूर्वक सात्विक रहते हुए पापमोचिनी एकादशी का व्रत किया जाए तो संसार के स्वामी सर्वेश्वर श्री हरि संतुष्ट होकर अपने भक्तों के समस्त कष्टों का निवारण करते हैं। बड़े-बड़े यज्ञों से भगवान को उतना संतोष नहीं मिलता,जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है। इस एकादशी की रात्रि में मन को प्रभु के चरणों में समर्पित कर रात्रि जागरण करके हरि कीर्तन करने से भगवान विष्णु अपने भक्तों पर कृपा करते हैं। हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही हर कष्ट से छुटकारा मिल जाता है।
आचार्य मुरारी पांडेय जी
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